एसीबी प्रीवेंशन एक्ट 1988 की कमजोर धाराएं बचा रही है भ्रष्टाचारियों को! नगर निगम बिलासपुर के जेल यात्री अधिकारी गण कलुषित कर रहे हैं कुर्सी को। भ्रष्टाचारियों पर 420,467,468,471 एवम् 120बी क्यों नहीं ? तपन गोस्वामी [ एडिटर इन चीफ ]
बिलासपुर (08 फरवरी 2022)[ तपन गोस्वामी द्वारा ] सरकारी नौकरी में कार्यरत भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सन 1988 की भ्रष्टाचार निरोधक कानून काफी कमजोर एवं अव्यवहारिक है। उक्त कानून में पकड़े गए भ्रष्टाचारियों के खिलाफ यदि 60 दिन में चालान पेश नहीं किया जाता तो भ्रष्टाचारी अधिकारी एवं कर्मचारी की जमानत आसानी से हो जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक साधारण आदमी जो कि सरकारी नौकरी नहीं करता यदि किसी आर्थिक लेनदेन एवं दस्तावेज के साथ कूट रचना करते पकड़ा जाता है तो पुलिस उस पर 420,467,468,471 एवम् 120(B) जैसे गंभीर धाराएं लगाकर जेल पहुंचा देती है। जिसमें हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में जमानत की सुनवाई के साथ ही आजीवन सजा का प्रावधान है। और जब एक भ्रष्टाचारी अधिकारी एवं कर्मचारी को एसीबी वाले रंगे हाथों गिरफ्तार करते हैं तो उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की मामूली धाराएं लगती हैं। जबकि भ्रष्टाचार अधिनियम के अंतर्गत पकड़े गए भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जब जांच होती है तो इनके खिलाफ भी वही धाराएं अर्थात धारा 420 ठगी धारा 467 मूल्यवान फर्जी दस्तावेज बनाना धारा 468 सरकार को धोखा देने के लिए दस्तावेज का कूट रचना करना धारा 471 मूल्यवान दस्तावेजों की कूट रचना कर करोड़ों रुपए कमाना इन सब धाराओं में आजीवन कारावास की सजा है। अब हम नगर निगम बिलासपुर के आधे से अधिक दागदार अधिकारियों की बात करेंगे जो की भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की हवा खा कर वापस आने पर सरकारी कुर्सी को कलुषित कर रहे हैं। शासन यदि वास्तव में भ्रष्टाचार के खेल पर लगाम लगाना चाहती है तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून की कमजोर धाराएं नहीं बल्कि आईपीसी की सख्त धाराएं लगाएं जिसमें भ्रष्टाचारियों को आजीवन की सजा हो।( ब्यूरो रिपोर्ट जासूसी नजर न्यूज़ नेटवर्क)