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चुनावी वर्ष 2023 में नंदकुमार साय का कांग्रेस प्रवेश। कांग्रेस सोच रही है कि इनके आने से पार्टी को क्या फायदा? बीजेपी का आंकलन इनके जाने से पार्टी को क्या घांटा : तपन गोस्वामी [editor-in-chief ]

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बिलासपुर (01 मई 2023 ) [तपन गोस्वामी द्वारा ] यह वर्ष चुनावी वर्ष है नेताओं का पाला बदल कोई नई बात नहीं है। बड़े-बड़े राज्यों में यह तो सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया मानी जाती है। परंतु छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में बड़े नेताओं का पाला बदल एक महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाक्रम है। भाजपा के बड़े आदिवासी नेता एवं तीन तीन बार के सांसद विधायक एवं छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय का कुछ माह पहले से ही भाजपा विरोधी बयान आ रहा था। जिसका की बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व गंभीरता से नहीं लिया। और आज नंदकुमार साय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के समक्ष कांग्रेस ज्वाइन कर ली। जिस बीजेपी ने नंदकुमार साय को पद एवम प्रतिष्ठा दिलवाई और इतने वर्षों बाद जब वे एक उम्र की दहलीज पर खड़े हैं ऐसे समय में बीजेपी छोड़ने का कोई स्पष्ट तर्क नहीं दिए हैं। सिर्फ उनका कहना है कि पार्टी में उनकी उपेक्षा हो रही है। कोई भी हैवीवेट पॉलिटिकल नेता जब कोई पार्टी बदलती है तो कुछ शर्तों पर यह तय होती है। परंतु श्री साय ने कांग्रेस ज्वाइन करने के पहले क्या शर्त रखी थी? यह देखने वाली बात है। अब विधानसभा चुनाव में सिर्फ 5 महीने रह गए हैं। कांग्रेस यदि नंदकुमार साय को कैबिनेट मंत्री ही बना देती है तो क्या उसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा? जहां तक सवाल है कांग्रेस के संगठन का वहां पहले से ही मेहनती, व्यवहार कुशल, गुड पॉलीटिकल गवर्नेंस वाले मोहन मरकाम बैठे है। उनका एक एक आदिवासी क्षेत्रों में अच्छी पकड़ है। तो ऐसे में देखने वाली बात यह है कि बीजेपी से आए कद्दावर नेता नंदकुमार साय किस तरह आदिवासियों को एंटी बीजेपी कर सकते हैं? अक्सर ऐसा भी देखा गया है कि जो पार्टी के जमीनी स्तर के नेता है वे नेता एवं कार्यकर्ता जो पार्टी के प्रति निष्ठावान होते हैं और कभी पार्टी नहीं बदली। तो ऐसी स्थिति में दूसरे पार्टी से आए हैवीवेट नेताओं को उतना तवज्जो भी नहीं देते। इस संबंध में हमने बीजेपी के संगठन से जुड़े एक नेता से बातचीत की तो उन्होंने अपना नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर कहां की छ.ग. आदिवासी बाहुल क्षेत्र है। यह आदिवासियों के कई समुदाय है और इनके समाज के जो नेता है वह तो किसी राजनीतिक पार्टी का सदस्य नहीं होता है परंतु वह नेतृत्व में पारंगत है। और इन्हीं आदिवासी नेताओं को बड़ी राजनीतिक पार्टियां अपने में जोड़ती है। बीजेपी के संगठन से जुड़े इस नेता का मानना है कि नंद कुमार साय सभी आदिवासी समुदाय का नेतृत्व नहीं करते हैं। इस कारण वे तो कांग्रेस प्रवेश कर गए परंतु उन्हें एक बड़ी संख्या में आदिवासी समाज को कांग्रेस ज्वाइन करवाना पड़ेगा। ताकि आगामी विधानसभा में आदिवासियों का एक बहुत बड़ा समूह कांग्रेस के पक्ष में मतदान करें। अन्यथा नंदकुमार साहिब कांग्रेस प्रवेश उतना कारगर सिद्ध नहीं होगा। (ब्यूरो रिपोर्ट जासूसी नजर न्यूज़ नेटवर्क )

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