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*वर्चस्व की लड़ाई में फंसा छठ पर्व एवं छठ घाट। एसपी सिंह एवं प्रवीण झा आमने-सामने। अनुभवी सदस्यों के कार्यरत समिति को अवैधानिक रूप से भंग करने का क्या है औचित्य? तपन गोस्वामी [एडिटर इन चीफ ]*

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बिलासपुर (20 अक्टूबर 2024) [तपन गोस्वामी द्वारा] शहर का छठ घाट के विषय में कहते है कि यह एशिया का सबसे बड़ा छठ घाट है। परंतु इसका निर्णय कौन किया? इसके विषय में पता नहीं है। परंतु शहर के मध्य बहने वाली जीवन दायिनी अरपा नदी के इस घाट का हमारे छत्तीसगढ़ी कथा पुराणों में बहुत ही अधिक महत्व दिया गया है। जो की प्रामाणिक भी है। अरपा नदी का महत्व माता बिलासा केवटीन से भी जुड़ा हुआ है। माता बिलासा केवटिन के सम्मान में प्रत्येक बिलासपुर वासियों का सर झुक जाता है। बहुत पुरानी बात है जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा था और बिलासपुर के कमिश्नर श्री मजूमदार थे तो उन्होंने माता बिलासा केवटिन पर बहुत अधिक अध्ययन किए थे। और श्री मजूमदार माताबिलासा केवटिन के जीवन वृतांत से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने माता बिलासा केवटीन की आदमकद प्रतिमा की स्थापना अरपा नदी के मध्य स्तपित करने की योजना राज्य शासन से स्वीकृत करा ली थी। इस बीच तत्कालीन कमिश्नर श्री मजूमदार का ट्रांसफर भोपाल सेक्रेटेरिएट में हो गई और योजना अधर लटक गई। बिहार, झारखंड, यूपी से आए व्यक्तियों की नजर तोरवा से आगे गैमन इंडिया द्वारा बनाए गए पल के नीचे बहती हुई अरपा नदी पर पड़ी। और उसे छठ घाट का नाम देकर इस घाट में छठ पर्व मनाने लगे। इससे पहले बिलासपुर वासियों का छठ पर्व के विषय में बहुत कुछ मालूम नहीं था। छठ घाट के नाम पर बिलासपुर वासियों का काफी विरोध भी था। शहर के प्रबुद्ध वर्गों ने छठ घाट का नाम बदलकर माता बिलासा केवटीन के नाम पर बनाने का जोड़ दिया था परंतु यह घाट राजनीति का शिकार हो गया। आज इस छठघाट के वर्चस्व की लड़ाई में फंस चुकी है। काफी समय से एसपी सिंह छठ घाट एवं छठ पर्व का संचालन कुशलता पूर्वक कर रहे थे। परंतु इस वर्ष छठ पर्व आने के पहले ही वर्चस्व से की लड़ाई पूरे बिलासपुर वालों को दिखने लग गई। अचानक प्रवीण झा की एंट्री हो गई। और शुरू हो गई छठ घाट को लेकर साजिश। इसमें राजनीति के साथ ही क्राइम की भी एंट्री हो सकती है। प्रशासन एवं पुलिस को ऐसे स्वयंभू पदाधिकारियो के क्रियाकलापों पर नजर रखने की जरूरत है। (ब्यूरो रिपोर्ट जासूसी नजर न्यूज़ नेटवर्क)

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